Monday, October 3, 2011

વિસામો: મધુવન (૨)

जुथिका रॉय - "एक दफ़े हैदराबाद में मेरी सरोजिनी नायडू के साथ मुलाक़ात हुई। वो आई थीं मेरा गाना सुनने के लिए, मुझे देखने के लिए। और उनको मैं कभी यह नहीं सोचा कि वो मेरे पास आएंगी, हमारे पास आकर बोलीं कि 'दीदी, आप ने महात्मा गांधी को देखा?' मैंने कहा कि नहीं, अभी तक हमारा यह सौभाग्य नहीं हुआ, हम तो बस पेपर में पढ़ते हैं कि वो क्या क्या काम करते हैं हमारे देश के लिए। बोलीं, 'आप जानती हैं आपका गाना कितना पसन्द करते हैं?' मैंने बोला कि नहीं, मुझे मालूम नहीं है, मुझे कैसे मालूम पड़ेगा? बोलीं कि 'उनको आपका गाना बहुत पसन्द है, हर रोज़ वो आपके रेकॉर्ड्स बजाते हैं, और जब प्रार्थना में बैठते हैं तो पहले मीराबाई का यह भजन बजाते हैं, फिर प्रार्थना शुरु करते हैं। तो मेरी एक बहुत इच्छा है कि आप महात्मा जी के साथ ज़रूर दर्शन करना, वो गाना सुनना चाहें तो एकदम सामने से उनको गाना सुनाना, यह मैं आपको बोल रही हूँ।'

मैंने यह खबर तो उनसे सुना, मैं पहले तो नहीं जानती थी, लेकिन मैं बहुत कोशिश करने लगी कि बापू के साथ मुलाकात करूँ, उनके दर्शन करूँ, उनको प्रणाम करूँ, लेकिन वह समय बहुत खराब समय था, स्वाधीनता के लिए बहुत काम थे, इधर उधर घूमते थे, और हमारे कलकत्ते में भी दंगे लग गए, सब जलने लगा चारों तरफ़। उस वक्त १९४६ में दंगे शुरु हो गए। हमने सुना कि बापू कलकता में आए हैं, और बेलेघाटा में, बहुत दूर है हमारे घर से, तो वहाँ पे ३ दिन ठहरेंगे, लेकिन बहुत बिज़ी हैं, किसी के साथ मुलाकात नहीं कर सकते। मैंने, माताजी और पिताजी ने सोचा कि जैसे भी हो हमें उनका दर्शन करना ही पड़ेगा। और उनके सामने नहीं जा सकेंगे, उनको गाना नहीं सुना सकेंगे, उसमें कोई बात नहीं है, लेकिन दूर से उनके हम दर्शन करेंगे सामने से। और एक साथ हम लोग सब भाई बहन, माताजी, पिताजी, काका, बहुत बड़ा एक ग्रूप बनाके, हम लोगों ने देखा कि जैसे वो मॉरनिंग्‍ वाक करते थे, तो हम रस्ते के उपर उनको प्रणाम करेंगे। ऐसे सब बातचीत करके हम निकले। वहाँ पहुंचे तो देखा कि जहाँ पर बापू रहते हैं वह बहुत बड़ा मकान है, उसके सामने एक बहुत बडआ गेट है और गेट के सामने ताला लगा हुआ है। वहाँ एक दरवान बैठा था तो हमने पूछा कि 'क्या हुआ, ताला क्यों लगा है, बापू मॉरनिंग् वाक में गए क्या?' तो बोला कि 'नहीं, उनका मॉरनिंग् वाक हो गया, अभी आराम कर रहे हैं, इसलिए ताला लगा हुआ है'। हमको बहुत बुरा लगा कि टाइम तो निकल गया।

मेरे काकाजी ने गेट-कीपर को कहा कि 'देखो, हम लोग बहुत दूर से आ रहे हैं, गेट को खोल दो, हम थोड़ा हॉल में बैठेंगे'। बोला, 'नहीं नहीं, मुझे हुकुम नहीं है, आप तो नहीं जा सकते, आप इधर ही खड़े रहना'। बहुत कड़ी धूप थी उधर, हम सब धूप में खड़े थे, हमारे पीछे-पीछे और भी बहुत से लोग आ गए। हम सब साथ में खड़े रहे। अचानक ऐसा हुआ कि वह शरत काल था, इसमें ऐसा होता है कि अभी कड़ी धूप है और अभी अचानक बरसात हो जाती है। तो एकदम से काले बादल आके बरसात शुरु हो गई, और हम भीगने लगे। हमारे काकाजी को तो बहुत गुस्सा आ गया। मुझे बहुत प्यार करते हैं, 'रेणु भीग रही है', उन्होंने एकदम से दरवान को जाकर कहा कि 'देखो, बापू को जाकर कहो कि जुथिका रॉय आई है उनके दर्शन के लिए, अन्दर जाओ और उनको यह बता दो'। दरवान तो चला गया, बाद में क्या देखते हैं कि अन्दर से मानव गांधी और दूसरे सब वोलन्टियर्स आ रहे हैं निकल के। छाता लेकर सब दौड़-दौड़ के आ रहे हैं। हम अन्दर गए, हॉल में सब बैठे। टावल लेकर आए क्योंकि हम सब भीग गए थे। थोड़ी देर बाद आभा गांधी, आभा गांधी बंगाली थे, कानू गांधी के साथ उन्होंने शादी की थी, वो आश्रम में रहती थीं। तो आभा आकर मुझको बोली कि 'दीदी, आप और माताजी अन्दर आइए, बापू जी आपको बुलाए हैं, और किसी को नहीं'। बापूजी एक दफ़े उठ कर हॉल में एक चक्कर देके, सबको दर्शन देके अन्दर चले गए और हमको और माताजी को अन्दर ले गए।

बापूजी एक छोटे से आसन पर बैठे हैं, कुछ नहीं पहनते थे एक छोटी धोती के अलावा। और आँखों में बहुत मोटे काँच का चश्मा है। उसमें से उसी तरह हमको देखने लगे और हँसने लगे। आभा जी ने कहा कि 'आज बापू जी का मौन व्रत है और वो आज नहीं बोलेंगे'। तो भी ठीक है, सामने तो आ गए बापू जी के, यही क्या कम थी हमारे लिए! बापू जी को हमने प्रणाम किया, उन्होंने दोनों हाथ मेरे सर पे रख कर बहुत आशीर्वाद दिया। फिर वो लिखने लगे, लिख लिख कर वो आभा को देते थे और वो पढ़ कर हमको बताती थीं। उन्होंने लिखा कि 'हम तो अभी बहुत बिज़ी हैं, हमारे पास तो टाइम नहीं है, हमें टाइम से सब काम करना पड़ता है, हम अभी दूसरे कमरे में जाकर थोड़ा काम करेंगे, आप यहीं से खाली गले से भजन गाइए'। मैं तो चौंक गई, पेटी-वेटी कुछ नहीं लायी, हम तो खाली दर्शन के लिए आ गए थे। तो एक के बाद एक उनके जो फ़ेवरीट भजन थे, वो उन्होंने बोल दिया था, मैं गाती चली गई, जैसे "मैं तो राम नाम की चूड़ियाँ पहनूँ", "घुंघट के पट खोल रे तुझे पिया मिलेंगे", "मैं वारी जाऊँ राम" आदि।

तो उस दिन वहाँ पर आधे घण्टे तक मैं गाई एक एक करके। उसके बाद बापू जी फिर हमारे कमरे में आ गए, फिर गाना बन्द करके उनको प्रणाम किया, तो फिर से हमारे सर पे हाथ रख के बहुत आशीर्वाद दिया, और फिर आभा को लिख कर बताया कि 'आज मेरा मैदान में अनुष्ठान है'। कलकत्ते का मैदान कितना बड़ा है आपको शायद मालूम होगा। तो वो बोले कि 'आज मेरा मैदान में अनुष्ठान है, शान्तिवाणी जो हम प्रचार करेंगे, उधर सब लोग आएंगे, उधर जुथिका भी हमारे साथ जाएंगी। जुथिका गाएगी भजन और मैं शान्तिवाणी दूंगा, और राम धुन होगा और यह होगा, वह होगा'। मेरा जीवन धन्य हो गया। बस वही एक बार १९४६ में वो मुझे मिले, फिर कभी नहीं मिले। उस वक्त मैं यही कुछ २५-२६ वर्ष की थी

2 comments:

  1. अ द भू त वाते ...
    प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु भी जुथिका के गायन को पसंद करते थे. उन्होंने एक बार जुथिका रॉय को अपने सरकारी आवास पर बुलाया और उनसे भजन और गीत सुने. " नेहरूजी चप्पल खोल कर जमीन पर बैठे. उन्होंने अपनी टोपी उतार के रख दी और दो घंटे तक मेरा गान सुनते रहे.

    सन 1920 में हावड़ा जिले के आमता गाँव में जन्मी जुथिका रॉय ने 356 से अधिक गीत गाये. इनमें से 214 हिंदी में, जिनमें अधिकतर भजन थे, 133 गीत बांग्ला में और दो तमिल में गाये. हिंदी के भक्ति गीतों में कुछ इस्लामिक नातें भी हैं तो कुछ होली और वर्षा गीत हैं. उन्होंने दो हिंदी फिल्मों – ‘रत्नदीप’ और ‘ललकार’ - में चार गीत गाये. जुथिका रॉय ने बावजूद बड़े आफर के फिल्मों में गीत नहीं गाये. ये दो अपवाद इसलिए हुए कि 'रत्नदीप' के लिए वे जाने माने निर्देशक देवकी बोस को ना नहीं कर सकी जिन्होंने कहा कि उन पर कोइन बंदिश नहीं होगी और वे अपनी पसंद से गायेंगी. दूसरी फिल्म 'ललकार' के निर्माता गीतकार पंडित मधुर थे. जुथिका रॉय ने मीरां के के अलावा जो गीत गाये वे अधिकतर पंडित मधुर के ही लिखे हुए थे इसलिए वह उन्हें भी इनकार नहीं कर सकी.

    जुथिका रॉय का परिवार रामकृष्ण मिशन से जुड़ा हुआ था. जुथिका और उनकी दो अन्य बहनों ने 12 बरस का ब्रह्मचर्य का व्रत लिया. बहनों ने 12 वर्ष व्रत निभा कर बाद में शादी कर ली मगर जुथिका रॉय ने यह व्रत आजीवन के लिए अपना लिया. उनके गानों को संगीतबद्ध अधिकतर बंगाल के प्रमुख संगीतकार कमल दासगुप्ता ने किया. वे जुथिका जी से विवाह करना चाहते थे मगर इसी व्रत के कारण यह विवाह नहीं हो सका.

    सन 1939 में उनके गाये मीरां और कबीर के भजनों ने जो जबरदस्त लोकप्रियता हासिल की वह आज भी बरकरार है. इसी साल उन्होंने पहली बार सार्वजनिक प्रदर्शन मुंबई में दिया और तब से उन्होंने कभी पीछे मुड कर नहीं देखा. 1972 में उन्हें पद्मश्री का अलंकरण दिया गया. सन 2002 में जुथिका रॉय की बांग्ला में आत्मकथा "आज ओ मोने पड़े" का प्रकाशन हुआ. इसी का गुजराती संस्करण "चुपके चुपके बोल मैना' का प्रकाशन 2008 में हुआ.

    (यह आलेख जनसत्ता के 2 मई के रविवारी परिशिष्ट में छपा)
    अब जुथिका रॉय की आवाज़ में सुनें एक भजन जिसे उन्होंने बापू को भी सुनाया था उस मुलाकात में।

    भजन: घूंघट के पट खोल रे तोहे पिया मिलेंगे (जुथिका रॉय, ग़ैर-फ़िल्मी)


    जुथिका रॉय को ढेरों शुभकामनाएँ देते हुए और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए ...
    પ્રજ્ઞાજુ

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  2. @ પ્રજ્ઞા જુ:
    આપના પ્રતિભાવમાં જ્યુથીકાબહેનનાં જીવનના વિવિધ પાસાઓ વિશે જે માહિતી આપી તે વાંચી આપ તથા જયુથીકાજી બન્ને પ્રત્યે આદરથી નતમસ્તક થઇ ગયો. આપનો અાભાર શબ્દોમાં માની શકું નહિ, પણ આપે જણાવેલું ભજન મૂળ બ્લૉગમાં મૂકું છું. પ્રતિભાવમાં તે પ્રકાશિત ન થઇ શક્યું. આપનો ફરી એ વાર આભાર.

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